शायरी मेरी कलम से !!
Amateur Shayar :)
Sunday 19 July 2020
गिर कर संभलना..
मंज़िल और सफर अब एक सपना लगता है,
इस सफर में हर राही से डर लगता है।
इन डगमगाती डगर से तुम न डरना अब ,क्यूँकि
गिर कर संभलना और मंजिल तक पहुंचना अब अच्छा लगता है।
गुररूर था...
गुररूर था हमें अपने हुस्न पे कहीं
जब उन्हें देखा तो बिखर गया यहीं
न जाने वक़्त वो कौन सा था
जब उनकी राह में देखे टूट ते तारे यूहीं
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